राज्य-: Uttar Pradesh (UP)
जिला-: Lucknow
आस्था
इस बार चातुर्मास चार नहीं पांच माह का होगा
By R.S. Dubey
कौन-कौन से दिन होगा आपके लिए शुभ मलमास में
जानिए सबकुछ पंडित अतुल शास्त्री से
दरअसल, ठीक 160 साल यानी 2 सितम्बर-1860 के बाद अब 18 सितम्बर-2020 को लीपवर्ष में अधिक मास पड़ रहा है। यही संयोग वर्ष 2039 में फिर बनेगा। इस संयोग का असर यह है कि पितृपक्ष समाप्ति के अगले दिन से ही मलमास शुरू हो रहा है। इस बार दो आश्विन मास पड़ेंगे। इस समय चातुर्मास चल रहा है। चातुर्मास चार महीने का होता है लेकिन इस बार मलमास के कारण ये पांच महीने का होगा। मलमास के कारण ही पितृपक्ष के ठीक बाद नवरात्र शुरू नहीं होंगे। मलमास खत्म होने के बाद ही नवरात्र शुरू होंगे। 19 साल बाद दो आश्विन माह इस बार पड़ रहे हैं। अधिक मास के कारण ही आश्विन मास दो बार होगा। लगभग हर 19 साल के अंतराल पर मध्यमान अधिकमास आता है। आश्विन महीने में अधिक मास 18 सितम्बर से शुरू होकर 16 अक्तूबर तक चलेगा। लिहाजा, नवरात्र 17 अक्तूबर से शुरू होंगे, 26 अक्तूबर को दशहरा और 14 नवम्बर को दीपावली मनाई जाएगी। इसके बाद 25 नवम्बर को देवउठनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास समाप्त हो जाएगा।ठीक 160 साल बाद अर्थात, 2 सितंबर, 1860 के बाद अब 18 सितंबर,2020 को लीप वर्ष में अधिक मास पड़ रहा है और साथ ही जान लें कि ऐसा संयोग अब 2039 में फिर बनेगा। पितृपक्ष के अगले दिन से ही मलमास शुरू हो रहा है। 19 साल बाद दो अश्विन मास पड़ेंगे। इस समय चातुर्मास चल रहा है। चातुर्मास चार महीने का होता है लेकिन इस बार मलमास के कारण ये पांच महीने का होगा। मलमास के कारण ही पितृपक्ष के ठीक बाद नवरात्रि नहीं आ रही है।
मलमास में खत्म होने के बाद नवरात्रि शुरू होगी। अधिकमास के कारण ही अश्विन मास दो बार होगा। लगभग हर 19 साल के अंतराल पर मध्यमान अधिकमास आता है। अश्विन महीने में अधिमास 18 सितंबर से शुरू होकर 16 अक्तूूबर तक चलेगा। नवरात्रि 17 अक्तूबर से शुरू होगी गौर 26 अक्तूबर को दशहरा और 14 नवंबर को दीपावली होगी। इसके बाद 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास समाप्त हो जाएगा।
मलमास में क्या कर सकते हैं क्या नहीं?
विवाह की बातचीत, विवाह की मौखिक सहमति, पहले से आरंभ किए गए कार्यों का समापन, प्रापर्टी की रजिस्ट्री, वाहन की बुकिंग, ब्याना, सरकारी कार्य, पढ़ाई, दैनिक व्यवस्था के कार्य आदि। कोई भी नई वस्तु जैसे की घर, कार इत्यादि ना खरीदें। घर के निर्माण का कार्य को शुरू ना करें और ना ही उस से संबंधित कोई भी समान खरीदें। कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, सगाई मुंडन व नए कार्य प्रारंभ नहीं करने चाहिए।
धर्मग्रंथों के अनुसार खर, मलद्ध मास को भगवान पुरुषोत्तम ने अपना नाम दिया है। इसलिए इस मास को पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। खरमास यानी खराब महीना। वह महीना जब हर प्रकार के शुभ काम बंद हो जाते हैं।
अधिकमास का पंचांग
मलमास का संबंध ग्रहों की चाल से है। पंचांग के अनुसार मलमास या अधिक मास का आधार सूर्य और चंद्रमा की चाल से है। सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है। वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का। इन दोनों वर्षों के बीच 11 दिनों का अंतर होता है। यही अंतर तीन साल में एक महीने के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास आता है। बढ़ने वाले इस महीने को ही अधिक मास या मलमास कहा जाता है।
मलमास को मलिन मास भी कहा जाता है। मलमास में कोई शुभ कार्य तो नहीं किए जा सकते, लेकिन धार्मिक और दान-पुण्य के काम जरूर करने चाहिए। मलमास में पीले फल, मिठाई अनाज व वस्त्रों का दान करना शुभकर माना गया है, क्योंकि भगवान विष्णु का प्रिय रंग पीला है।
तुलसी पूजन जरूर करें और रोज संध्या के समय तुलसी के सामने दीप दान करें ॐ वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करें। इस मंत्र जाप के साथ तुलसी की 11 बार परिक्रमा करें। इससे आपके घर में सौभाग्य का वास होगा।
मलमास भगवान पुरुषोत्तम का महीना होता है, इसलिए इस मास में धर्म-कर्म खूब करना चाहिए। मलमास में सूर्योदय के पहले उठकर स्नान-ध्यान करने का विधान है। मलमास में जितना हो सके धर्म से जुड़े कार्य करें और गरीबों की मदद करें। तुलसी के सामने गाय के घी का दीपक लगाए और ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जप करते हुए 11 बार परिक्रमा करें। ऐसा करने से घर के सारे संकट और दुख खत्म हो जातें हैं। ब्रह्म मुहर्त मे उठकर स्नान करके भगवान विष्णु को केसर युक्त दूध का अभिषेक करें और तुलसी के माला से 11 बार ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम: का जप करें।
पीपल के पेड़ मे जल को अर्पण करके गाय के घी का दीपक जलातें है तो आपके ऊपर भगवान विष्णु का आशीर्वाद हमेशा बना रहेगा। प्रत्येक दिन श्री हरी का ध्यान करें और पीले पुष्प अर्पित करें। दक्षिणावर्ती शंख की पूजा करनी चाहिए। इस मास मेद्य कहा जाता है कि दक्षिणावर्ती शंख की पूजा करने से श्री हरी विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं।
अधिकमास : क्या कोई शुभ काम मुमकिन है?
ऐसा नहीं है कि मलिन मास या खर मास में कोई शुभ काम हो ही नहीं सकता । वैसे भी 2020 में कोरोना काल में मार्च से अब तक सब कुछ मालिन्य ही चल रहा है और उपर से धार्मिक या ज्योतिषीय कारणों से पूरे एक महीने में दिनचर्या और प्रभावित हो जाए, उसके लिए कुछ तो प्रावधान होगा? जी बिल्कुल है। इस मास में कुछ ऐसे दिन भी हैं जब आप कई काम कर सकते हैं। यों तो 18 सितंबर ,शुक्रवार को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र है जो शुभ ही है। सर्वार्थसिद्धि योग 21,26 सितंबर, और अक्तूबर में 1, 2,4,6,7,9,11, है। द्विपुष्कर योग में दोगुना फल मिलता है। ये तिथियां 19 व 27 सितंबर को रहेंगी। अमृतसिाद्धि योग भी ज्योतिष में दीर्घकालीन कार्यों के लिए ठीक होता है। यह 2 अक्तूबर को पड़ेगा। रविपुष्य योग में कुछ नए काम आरंभ कर सकते हैं। यह 11 अक्तूबर को होगा। आप अपने कायार्नुसार इन तिथियों का चयन कर सकते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर में चार वर्ष में एक बार लीप ईयर आता है। लीप ईयर में फरवरी में 29 दिन होते हैं। हिंदू कैलेंडर में लीप ईयर नहीं होता, अधिक मास होता है। ये संयोग है कि 2020 में लीप ईयर एवं आश्विन अधिक मास दोनों एक साथ आए हैं। आश्विन का अधिक मास 19 साल पहले 2001 में आया था, लेकिन लीप ईयर के साथ अश्विन में अधिक मास 160 साल पहले 2 सितंबर 1860 को आया था।
अधिकमास का पौराणिक आधार क्या है?
अधिक मास के लिए पुराणों में बड़ी ही सुंदर कथा सुनने को मिलती है। यह कथा दैत्यराज हिरण्यकश्यप के वध से जुड़ी है। पुराणों के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने एक बार ब्रह्मा जी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर लिया और उनसे अमरता का वरदान मांगा। चुकि अमरता का वरदान देना निषिद्ध है, इसीलिए ब्रह्मा जी ने उसे कोई भी अन्य वर मांगने को कहा। तब हिरण्यकश्यप ने वर मांगा कि उसे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर मार ना सके। वह वर्ष के 12 महीनों में मृत्यु को प्राप्त ना हो। जब वह मरे, तो ना दिन का समय हो, ना रात का। वह ना किसी अस्त्र से मरे, ना किसी शस्त्र से। उसे ना घर में मारा जा सके, ना ही घर से बाहर मारा जा सके। इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा और उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया। समय आने पर भगवान विष्णु ने अधिक मास में नरसिंह अवतार यानि आधा पुरूष और आधे शेर के रूप में प्रकट होकर, शाम के समय, देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीन कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया।
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संस्थापक
पंडित अतुल शास्त्री
09594318403/9820819501
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